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नज़रिया - ए - लाइफेरिया
मेरे अपनो ,
जब भी मैं देखती हूं आप सभी को तो आप सभी में ख़ुद को पाती हूं और जब कभी ख़ुद को देखती हूं तो आप सभी नज़र आ जाते हैं मुझको ! क्योंकि दरअसल हम सभी एक ही हैं ।हम सभी के दिल बिल्कुल एक से धड़कते हैं । कोई गहरा दुःख ,कोई गम्भीर परेशानी में उतर जाती है हम सभी की शक्लें ….फ़िर किसी ख़ुशी, किसी सुक़ून के लम्हें में बिखर जाती है मुस्कुराहट हम सभी के चेहरों पर…..ताज़्ज़ुब तो बस इस बात का है कि ये कोई नई बात नहीं जो मुझे आपको या आपको मुझे समझानी पड़े….फ़िर भी न जानें क्यों “इंसान” नाम का “समझदार प्राणी” आख़िर समझता क्यों नहीं ! या शायद समझना ही नहीं चाहता !
जबकि ये हुनर तो ऊपरवाले ने हम सभी को बख़्शा ही है कि ग़र रो सकें हम किसी के ग़म में तो दुःखों को हल्का कर दें और यदि ख़ुश हो सकें तो दोगुना कर दे ख़ुशी किसी की !
तो प्यारे साथियों,
“लाइफेरिया” सुक़ून और ख़ूबसूरत एहसासों का एक ऐसा ही अनोखा नुक्कड़ है जहाँ दिली और दिमाग़ी सरगोशियों के संग यक़ीनन ज़िन्दगी मुस्कुराएगी ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे इस प्रयास में आप सभी का सकारात्मक सहयोग हमेशा की तरह बना रहेगा । और हम सभी रूबरू हो सकेंगे उस सत्य के कि हम सभी की ज़िंदगी में कुछ सकारात्मक इज़ाफ़ा करने के लिए हमेशा ही पैसों की गरज़ नहीं होती । हम अपने भाव-विचार,ज्ञान, बर्ताव, सहानुभूति, प्रेम,समर्पण,स्नेह अपनापन और आपसी समझ से दुनिया को बदल सकते हैं यदि नहीं तो कमसकम ख़ुद को तो बदल ही लेंगे… है न !