धैर्य और संयम के बग़ैर पकने न पाए फ़सलें भी खेतों में!
हमारा विचलित होना न होना, है हमीं के हाथों में!!
जी हाँ! प्यारे दोस्तों ,
आज हम पहुंचे हैं “नौ दिन,नौ रातें! और ज़रूरी नौ बातें!” की दूसरी कड़ी में जिसके अंतर्गत आज हम बात कर रहे हैं धैर्य और संयम की।
धैर्य न हो तो मैं कुछ लिख न पाऊं! और धैर्य न हो तो आप कुछ सुन न पाओ!
इतिहास गवाह है कि जब जब खोया है धैर्य और संयम हमनें कितनी बड़ी बड़ी चुकाई हैं कीमतें हमनें!
और कितने पार हो गए केवल धैर्य का हाथ थामें थामें!
संयमित गर जीवन हो,संयमित हो विचार!
लोक अचंभित होत रहे,देख देख आचार!
सोचो कि ग़र समंदर छोड़ दे आपा अपना तो कहाँ टिक पाएगी धरा!
सोचो तो जीवन रस्सी पर चलने जैसा चुनौतिपूर्ण ही है और यदि उसे भली प्रकार समझ सके तो रस्सी पर चलना उतना आसान भी है….. यदि नहीं होता तो भला कैसे रस्सी पर चलने वाली वो क्षीणकाय स्त्री सदैव मुस्कुराती दिखती!
हर वो व्यक्ति जो दिख पड़ता है धैर्यवान और संयमित हमें …..क्या नहीं देखे हैं जीवन के उतार चढ़ाव उसने!
क्या नहीं उपस्थित हुई उसके जीवन में संयम खोने की परिस्थितियां!
पर फिर भी यदि एक सौम्य स्मित के साथ खड़ा है वो जीवन के इस मंच पर….निभा पा रहा है अपने किरदार को बखूबी! तो निश्चित ही ये श्रेय है उसके अपने धैर्य और संयम को जिसके चलते वो समस्त विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं खोता है संतुलन अपना और डटे रहता है मोर्चे पर अपने जीवन समर में सदैव!
तो प्यारे दोस्तों ,
क्यों न हम भी ठान ले और तय कर लें कि कभी न खोएंगे आपा अपना,जल्दबाज़ी में नहीं बिगाड़ेंगे काम अपने या औरों के!
और क्रोध में सबकुछ गुड़ गोबर करने की बजाय क्रोध पर काबू पाने का हुनर हासिल कर , हर बार बाद में पछताने से पहले ही रोक लेंगे ख़ुद को और संवार लेंगे अपने बिगड़ते कामों को धैर्य और संयम से……कि हमारे जीवन कौशल के लिए हमीं को थम कर तय करनी होगी ज़िम्मेदारी हमारी! क्योंकि जीवन हमारा है तो निर्णय भी हमारे ही होंगे…..है न !
बहुत शुक्रिया