उत्साह और उमंग | नौ दिन, नौ रातें!! और ज़रूरी नौ बातें!!

उत्साह और उमंग

उत्साह और उमंग न हो तो, हो कैसे शुरुआत!
बस भावों के रहने से ही,बने न मन की बात!

नमस्कार प्यारे दोस्तों,
स्वागत है आप सभी का आपके अपने यूट्यूब चैनल “लाइफेरिया” के इस मंच पर जहां आज हम बात कर रहे हैं “नौ दिन नौ रातें, और ज़रूरी नौ बातें!” जिसके अंतर्गत अब तक हम बात कर चुके हैं आस्था और विश्वास की,धैर्य और संयम की! और आज हम प्रस्तुत हैं उत्साह और उमंग पर बात करने के लिए जिसके अभाव में जीवन के उत्सव की कल्पना भी सम्भव नहीं!


जीवन जो हर पल बस बीते ही जा रहा है !
आपको क्या लगता है कि ये थम जाएगा! रुक जाएगा यदि हम इस जीवनोत्सव में शामिल ही न हुए तो!! नहीं जी ! इसमें शामिल तो लाखों हैं, हज़ारो हैं! ज़रा नज़रे इनायत तो कीजिए और देखिए खिलखिलाकर हँसने वालों को, सदा निश्चिंत होकर मस्त जीने वालों को ! जो जी रहे हैं टूट कर हर एक लम्हें को ज़िन्दगी के!! जीवन किसी और ही रूप में नहीं मिला है उनसे!
हाँ! मगर वे ख़ुद ही एक अलग अंदाज़ में ज़रूर मिले हैं उससे!! ये वही लोग हैं जो बैठे नहीं रहते ये सोचकर कि चलने से भला क्या होगा! क्योंकि वो जानते हैं और मानते भी हैं कि यदि जीवन है तो सुख दुख ,उतार चढ़ाव, परेशानियां तो मिलेंगी ही जीवन में!


पर उदास और हताश होकर बैठे रहने से कैसे मुमकिन है गुज़ारा अपना! कुछ जोश और जुनून तो सीने में जलाए ही रखना होगा! और उत्साह और उमंग के उस ईंधन की व्यवस्था करनी ही होगी जिसके बग़ैर कुछ भी सम्भव नहीं! क्योंकि दौड़ने के लिए ज़रूर, ज़रूरी है चलना! पर चलने के लिए सिरफ़ उठना नहीं! क्योंकि उठते तो हर रोज़ ही हैं हम पर जागते कहाँ है हमेशा ! ज़िन्दगी के सफ़र में कहाँ बरकरार रहती है हमेशा मुस्कुराहट लबों पर! क्योंकि भूल जाते हैं हम अक्सर कि सिरफ़ रोज़ सवेरे उठकर चाय बनाने जैसा साधारण काम हो या फिर ओलम्पिक खेलों से स्वर्ण लाने जैसा असाधारण ! परन्तु उत्साह और उमंग के तड़के के बग़ैर न चाय में स्वाद आना है और न ही कठिन परिश्रम,लगन, अनुशासन, और समर्पण खेलों में! सोचिए क्या नीरज चोपड़ा को जानकारी नहीं थी कि भारतीय खेलों की ओलम्पिक स्थिति क्या थी और है!
पर उन्होंने नहीं खोई हिम्मत क्योंकि उत्साह बरकरार था और उमंग भी! ये न होता तो कैसे भला कोई एवरेस्ट पर चढ़ता! अंतरिक्ष मे पहुंचता!
और उतरता चांद पर!
ये तो छोड़िए जनाब ये जो आपका अपना चांद है न! चोरी चुपके उसकी बालकनी में पैर रखने के लिए भी गहरी ज़रूरत है उत्साह,उमंग,जोश और जज़्बे की… !!


तो देर किस बात की!
बस अभी उठ खड़े होइए! अब लीजिए एक गहरी सांस और महसूस कीजिए अपने भीतर बसे उत्साह और उमंग को !
फिर थाम कर उनका हाथ ,निकल पड़िए ….कि अब चल पड़ी है आपकी नाव!
है न!……….बहुत शुक्रिया!

Day 1 – आस्था और विश्वास
Day 2 – धैर्य और संयम
Day 3 – उत्साह और उमंग
Day 4 – प्रण और संकल्प
Day 5 – क्षमा और शांति
Day 6 – कर्म और समर्पण
Day 7 – भाव और संवाद
Day 8 – सुख और आनंद
Day 9 – शक्ति और सामर्थ्य

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *