शक्ति के आगमन से सामर्थ्य आता है!
सामर्थ्य के जागरण से शक्ति संचालन!
नमस्कार प्यारे दोस्तों,साथियों,
एक बेहद रुचिकर विषय के साथ हम बढ़ रहे हैं हमारी श्रृंखला की पूर्णता की ओर….
चाहे पूजा हो, पाठ हो, होम हवन हो,तप हो,तपस्या हो,आराधना हो, प्रार्थना हो, अनुष्ठान हो या कर्म कोई …..परन्तु इस सब का कोई न कोई प्रयोजन अवश्य होता है।
जैसे प्रत्येक क्रिया का कोई न कोई कारण भी होता ही है।
वैसे ही जब भी किसी कर्म की पूर्णता की ओर बढ़ते हैं हम …..हमें प्राप्त करना होता है कुछ न कुछ अवश्य….मनुष्य की सबसे बड़ी, महत्वपूर्ण इच्छा, आकांक्षा और महत्वाकांक्षा होती है विभिन्न प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करना!
कोई तन की शक्ति पर ध्यान केंद्रित करता है, कोई मन की शक्ति को प्राप्त करने हेतु कृतसंकल्प होता है।
शक्ति अर्थात पावर की भूख और प्यास ही से सर्वाधिक ग्रस्त होती है मनुष्यता!
दुखद ये है कि न केवल शारीरिक, मानसिक,और आत्मिक अपितु पावर की, शक्ति की ये भूख पारिवारिक, सामाजिक स्तरों से गुज़र कर राजनैतिक स्तर से होते हुए व्यक्ति को अखिल विश्व पर अपना अधिपत्य स्थापित करने हेतु प्रेरित करती है ।
परन्तु उल्लेखनीय है कि शक्ति को प्राप्त करने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, शक्ति का सुसंचालन….वरना शक्ति तो रावण के पास भी थी पर नहीं था सामर्थ्य उसके सुसंचालन का!
जैसे किसी से भी युद्ध करने के लिए ‘शक्ति‘ की दरकार होती है परन्तु किसी को क्षमा करने के लिए ‘सामर्थ्य‘ की आवश्यकता पड़ती है!
परन्तु दुखद आश्चर्य है कि शक्ति तो सभी चाहते हैं बग़ैर ये जानें ही कि उसे संभालने का, वहन करने का सामर्थ्य भी हासिल किया है हमनें या नहीं! गौरतलब है कि सिंह की शक्ति नहीं पर सामर्थ्य को देख कर सिंहारूढ़ हुई थी शक्ति!
क्योंकि शक्ति से उपजता है उत्तरदायित्व, जवाबदेही….और जब कोई पूर्णरूपेण समर्थ होता है, शक्ति के सुसंचालन हेतु तभी सम्भव होता है “सुशासन”….. न केवल आत्मिक, मानसिक, शारीरिक अपितु व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर भी! जिसकी आवश्यकता मनुष्यता को सदैव थी,है और रहेगी…..है न!
बहुत शुक्रिया…