सोचने वाली बात 04 : दिल पर ले ले यार… और दिमाग पर भी

पंछी को क्या पता कि कौन शिकारी घात लगाए बैठा है…कल मिला था जो दाना पानी वो आज नसीब भी होगा या नहीं !!
पर इस एक ख़याल से ही वो रद्द नहीं कर देता उड़ानें अपनी ! कि उसको यक़ीन है अपने पंखों से कहीं ज़्यादा अपनी परवाज़ों पर, अपने फैसलों पर, अपने हौसलों पर ! और इसीलिए वो बैठा नहीं रहता शाखों पर, घोंसलों में….भूख प्यास से मर जाने के लिए !!

पर हाँ! वो स्वीकार करता है ज़िन्दगी की हर छोटी बड़ी चुनौती और हर सुबह निकल पड़ता है दाना पानी की तलाश में क्योंकि दुनिया के किसी भी जोख़िम, किसी भी खतरे से कहीं कहीं बड़ी होती है उसकी अपनी जीने की चाहत !!
लगातार जीते चले जाने की ख़्वाहिश…!
हर मुश्किल, हर परेशानी,हर ख़तरे के ख़िलाफ़ डटे रहने का जज़्बा और यक़ीन जानिए प्यारे दोस्तों, यही तो वो जज़्बा है जिसकी उंगली थामें, ढ़लती शाम तक फ़िर फ़िर लौट आते हैं पंछी अपने घोसलों में !
तो अब धैर्यपूर्वक सोचने वाली बात ये है कि आप और हम ,हमारे जैसे इंसान अपनी ज़िंदगी की तमाम विपरीत परिस्थितियों में टूटने और हारने से पहले क्या एक नन्हें से परिंदे से कुछ हौसला उधार नहीं ले सकते ?
और यहाँ विडम्बना तो देखिए कि परिंदों को पिंजरों में क़ैद करने वाले इंसान ने ख़ुद अपने लिए कितनी कितनी बेड़िया तैयार की हैं! अनावश्यक भय, अपने कम्फ़र्ट झोन में बने रहने की झूठी विवशता ,जोख़िम न उठाने की प्रवृत्ति, और ख़ुद से पहले और ज़्यादा दूसरों पर विश्वास……जी हाँ! यही तो वो बेड़ियां हैं, वो सलाखें हैं ,वो जंजीरें हैं जो रोक लेती हैं हमें ऊंची और ऊंची उड़ान भरने से ! तो यक़ीन कीजिए कि जब कभी दिल-ओ-दिमाग़ का पंछी फड़फड़ाए असीम आकाश की उन्मुक्त उड़ान भरने को ! तो बग़ैर डगमगाए, एक विश्वास की नज़र से देखना ख़ुद को और चूकना मत ख़ुद ही को एक मौक़ा देने से कि ज़िंदगी की पहेली इतनी मुश्किल भी नहीं जिसे तुम हल न कर सको ! और मैं हरगिज़ नहीं कहूंगी कि “दिल पे मत ले यार”
हाँ! पर मैं कहती हूँ कि अब तो दिल पर ले ले यार और दिमाग़ पर भी !” कि तुझको छा जाना है अब ज़िन्दगी के आकाश में आशाओं, उम्मीदों,खुशियों, सफलताओं के सुंदर सपनों के इंद्रधनुष बनकर जो न सिरफ़ रोशन होगा अपनी ही रोशनी से पर यक़ीनन जो औरों को भी रोशन करेगा….है न !

By Dr. A. Bhagwat

founder of LIFEARIA

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