ज़िन्दगी के माथे पर लिख्हा जा सकता है नाम सिर्फ़ ज़िन्दगी का…..

ज़िन्दगी के माथे पर लिख्हा जा सकता है नाम सिर्फ़ ज़िन्दगी का…..

जी हां प्यारे दोस्तों ,
स्वागत है आप सभी का आपके अपने यू ट्यूब चैनल “लाइफेरिया” के इस मंच पर जहां मैं बेहद बेसब्री से इंतज़ार करती हूं आप सभी से रूबरू होने का।
तो चलिए करते हैं शुरुवात…..आज हम बात कर रहे हैं हमारे अपने जज़्बों की,हौसलों की,इरादों की, क्षमताओं की,और लाख़ लाख़ गिर कर भी फ़िर फ़िर सम्भलने के अपने हुनर की।
और इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है हमारा आज… आज जब इस महामारी आने के पिछले लगभग डेढ़ साल के घटनाक्रम में क्या क्या नहीं हुआ! हम मेंसे कितनों ने अपनी नौकरी गवाई, काम धंधे ठप्प हुए, जमापूंजी ख़त्म हुई!! क़र्ज़दार होना पड़ा!! रिश्तों की तो पोल ही खुल गई! अपने परायों की समझ ने आँखें खोल कर रख दी हम सभी की!!
हममें से कितने ही बुरी तरह संक्रमित हुए , फिर ठीक हुए और बड़ी तादात में लोग आज भी इसके आफ़्टर इफ़ेक्ट से जूझ रहे हैं!
और सबसे भयानक और अपूरणीय क्षति तो ये हुई कि हज़ारों ही नहीं बल्कि लाखों ने इस सबके चलते अपने अपनों को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया! मगर क्या इस सबसे रुक गया ज़िन्दगी का कारवां ?और थम कर बैठ गई ज़िन्दगी धप्प से ? नहीं न!!!!
पता है क्यों? क्योंकि ज़िन्दगी के माथे पर लिख्हा जा सकता है नाम सिर्फ़ ज़िंदगी का! और हर दफ़ा जल कर हम धुआं ही नहीं होते! कभी यूं भी होता है कि राख बन कर ही सही पर समा जाते हैं हम ज़मीं में, फिर फिर उगने की ख़ातिर !! कि यही फ़ितरत है हमारी और यही हमारी तालीम में भी शामिल है! न सिर्फ़ गिर कर उठ सकना दोबारा! पर गिरे हुओं को उठा पाना भी…..क्योंकि जब कभी यूं लगता है कि सबकुछ ख़त्म हो गया और कुछ भी शेष नहीं रहा तब ही जान पाते हैं हम कि सबकुछ ख़त्म होने पर भी ख़त्म नहीं होता है जो और बचा रहता है हमेशा वही तो है सबसे अद्भुत,अलौकिक,अप्रतिम,अद्वितीय,अनुपम, अतुलनीय, और अनमोल जीवन….. है न!
बहुत शुक्रिया…..

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