कविता : आलिंगन

alingan hug poem hindi

पहचानों आलिंगन को  !
उसे ही तो महसूस किया था हमने पहले पहल….जब पाया था ख़ुद को अपनी माँ की बाहों में !
फ़िर कितने ख़ुश हुए थे हम , जब बाबा ने भरा था बाहों में….. पहली दफ़ा ! 
और  याद करें कि रक्षाबंधन पर सरप्राइज़ विज़िट पर कितने स्नेह से आलिंगनबद्ध हुए थे  हम अपनी प्यारी जीजी से !
और बचपन के हमारे दोस्त , जिनके हररोज़ ही गले पड़ते रहे हम!
फ़िर भला क्यों “आलिंगन” के नाम से हमें याद आती है सिरफ़ “प्रिया” हमारी …! प्रियतम हमारा और 
गालों पर हमारे फैल जाती है  शर्मीली लालिमा !
दोस्तों ,
आओ याद करें  कि कितनी दफ़ा ज़िंदगी ने गले लगा कर चूम लिया था माथा हमारा !
और एक दफ़ा तो हमें मौत भी  गले लगाती ही है न !
ताकि मिल सकें हम  सभी उस परम पिता परमात्मा से गले, जो हरदम बाहें फैलाए खड़े हैं बस हमारे ही इंतज़ार में !
सोचो तो कितनी बड़ी है परिभाषा “आलिंगन” की !!!!वरना ये केवल एक प्रेमी युगल का गले मिलना भर है !

by Dr. A. Bhagwat

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