कविता : कॅरोना का ख़त, सैनिटाइजर के नाम

a letter from corona

पेश ए ख़िदमत है करोना पर मेरी एक ताज़ा तरीन हास्य कविता

” कॅरोना का ख़त सेनेटाइज़र के नाम”
प्लीज़ ग़ौर फ़रमाइए
प्यारे दोस्त ,
तुम सेनेटाइज़र हो मेरे और…
मैं तुम्हारी कॅरोना….!!!
अब मुझसे मुक्ति के लिए तुम इतनी भी ज़िद करो ना !!
तुम्हारे लिए ही जानेमन, मैं चायना से उठ कर आई हूं!
भारत के लिए तोहफ़े में आत्म निर्भरता लाई हूँ ।
किसी थाली के कोने में पड़े नींबू के अचार थे तुम….!!
मैं ही तो बहा कर तुम्हें मुख्य धारा में लाई हूँ !
सुना था भारतवर्ष में है, मेड इन चायना की भरमार..!
इसी परम्परा को मैं…. अब आग लगाने आई हूं !
मैंने ही तो करवाई है अपने ग़ैरों की पहचान..!!
इस दौर में पॉज़िटिव होने पर, हर अपने को तू निगेटिव ही जान..!!
बड़े बड़े देशों को मैंने, घुटनों के बल कर दिया..! ऑफ़लाइन थी दुनिया, मैंने ऑनलाइन ही कर दिया..!
पता नहीं मुझको अब मैं, कितना यहाँ रुक पाऊंगी !
लगता है आधे में ही , अपने घर को जाऊंगी !
मैं तो आई थी दुनिया को सबक यही बस सिखलाने !

जीवन को भूली दुनिया को ,फिर जीवन से मिलवाने !
मेरे जाने से लेकिन क्या मानवता लौट आएगी..?
हरीभरी वसुंधरा पर ,क्या फिर लालिमा छाएगी ?
मेरे आने से जग में आई थी एक जागरूकता भी
प्रश्न यही है क्या हर सबक को याद ज़िन्दगी रख पाएगी ?
पर ज़िन्दगी के अपडाउन में लॉकडाउन की परिभाषा से
सपनों को अनलॉक करके, सार्थक मैं हो जाऊंगी…
तुम्हारी कॅरोना

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