मैं तुम्हारी मुहब्बत में हूँ , पता है …… ?
तुम्हारे इश्क़ में दिवानी – दिवानी !!
तो क्या हुआ कि तुम नज़रे इनायत भी नहीं करती हो मेरी जानिब ; मगर मैं फिर भी तुम पर मरती हूँ !
कभी मन करता है कि कॉलर पकड़कर पुछूँ तुमसे …. क्यूँ इतना इतराती हो भई ?
माना कि खूबसूरत हो बड़ी …मुझे क्यों नहीं अपनी ख़ूबसूरती से , रंगीनी से सराबोर होने देती ?
आखिर बता भी दो क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा ?
क्या सचमुच कुछ बिगाड़ सकती हूँ तुम्हारा ?
अगर छोड़ कर चल दूँ तुम्हें बीच में एवें हीं !
तब भी तुम बनी रहोगी , बस अपनी ही तरह ..!
मेरे होने न होने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता तुम्हें !
मगर मुझे तो पड़ता है ” दोस्त ” , बहुत फ़र्क़ पड़ता है !
मैं जो तुम्हारी हूँ , ग़र तुम भी मेरी हो सको तो कैसा रहे !
बस इक दफ़ा मुझको गले लगा कर तो देखो न ”””’ज़िंदग़ी “”””
कविता : मैं तुमसे प्यार करती हूँ
