कविता : मैं तुमसे प्यार करती हूँ

love you poem

मैं  तुम्हारी  मुहब्बत  में  हूँ ,  पता  है …… ?
तुम्हारे  इश्क़  में  दिवानी –  दिवानी !!
तो  क्या हुआ  कि  तुम   नज़रे   इनायत  भी नहीं  करती हो  मेरी  जानिब ; मगर  मैं  फिर भी  तुम  पर मरती हूँ !
कभी  मन  करता है कि  कॉलर  पकड़कर  पुछूँ    तुमसे  …. क्यूँ  इतना  इतराती हो भई  ?
माना  कि  खूबसूरत  हो  बड़ी …मुझे  क्यों  नहीं अपनी  ख़ूबसूरती से ,  रंगीनी से  सराबोर  होने देती ? 
आखिर  बता भी दो  क्या बिगाड़ा  है  मैंने तुम्हारा ?
क्या  सचमुच  कुछ  बिगाड़  सकती हूँ   तुम्हारा  ? 
अगर  छोड़ कर  चल दूँ  तुम्हें  बीच  में  एवें हीं ! 
तब भी तुम  बनी  रहोगी  ,  बस  अपनी  ही तरह ..!
मेरे होने न होने  से  कोई  फ़र्क़  नहीं  पड़ता तुम्हें !
मगर  मुझे  तो  पड़ता  है  ” दोस्त ” , बहुत फ़र्क़  पड़ता  है !
मैं  जो तुम्हारी  हूँ  ,  ग़र  तुम  भी  मेरी हो सको  तो  कैसा रहे !
बस  इक  दफ़ा  मुझको  गले  लगा  कर  तो देखो  न  ”””’ज़िंदग़ी “”””

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