पेड़ों पर ही उग आए थे हम – तुम
प्यार की बारिश में भीगे – भीगे
मुहब्बतों की खुशबुओं से महके – महके
फिर हालातों की आँधियों से लड़े थे संग – संग
ये बात और है कि पकते – पकते उग आए थे पँख भी तुम्हारे और
पूरी तरह पकने से पहले ही
नाप ली थी तुमने ऊँचाइयाँ आकाश की
और मैं , जो नहीं उगा पाई थी पँख
फिर भी मायूस नहीं हूँ
जानती हूँ सच ये किसी रोज़ , यक़ीनन
यहीं , इसी पेड़ के नीचे
ख़त्म होने से कुछ पहले ,सारे बीज सौंप जाऊँगी ज़मीं को !
लिख जाऊँगी एक – एक बीज , एक -एक नवांकुर , एक – एक पौधे का हिसाब अपनी वसीयत में !
फ़ैल जायेगा मेरा वज़ूद , यहाँ – वहाँ और
जब लौटोगे तुम पंछी बन ….तो
by Dr. A. Bhagwat