प्यारे दोस्तों,
आप सभी को पृथ्वी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
बात पृथ्वी की होगी तो पेड़ों तक भी पहुँचेगी । वो पेड़ जो लाख़ झड़ चुके पत्तों के बावज़ूद खड़े रहा करते हैं , फ़िर लौटने वाली बहारों की ख़ातिर …कि ज़रुर वो उगे थे कोमलता को लिए …हरदम बदलते मौसमों को बर्दाश्त करते हुए भी…वो बने रहें ,वो बने रहेंगे…कि बने रहना ही फ़ितरत है उनकी….वो यही सिखाते भी हैं कि बने रहो बस……बदलो जितना मुमकिन है बदलना…..छोड़ों जितना मुमकिन है छोड़ा जाना ……उतना ही लो जितना हो ज़रूरी…..वो पेड़ ही हैं जिनसे मिलते रहते हैं फ़ल, फूल,पत्तियां,लकड़ियां और छाँह अनवरत …..जब फ़ल फूल न हों…..यहां तक कि पत्तियां भी नहीं !! तब भी…. हाँ! तब भी ! पतझड़ के पेड़ बहुत ऊंची और मधुर आवाज़ में बोलते हैं !….. खोलते हैं अपने सन्नाटे और देते हैं सांय सांय करती हवा को जवाब अपनी तटस्थता से ! कि शाखों के काटे जाने पर भी रुक नहीं जाती उनपर उगना फूल और पत्तियां..! क्योंकि काटे जानें से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण और ख़ूबसूरत है फ़िर फ़िर उगना उनका ! पर छांव बांटने से पहले सहनी होती है उन्हें मौसम की मार ! निपटना होता है आंधी तूफानों से ……पर पता है! पहले से ही ख़ूबसूरत पेड़ कब और कहाँ ज़्यादा ख़ूबसूरत, मनमोहक और ज़िंदा दिखाई देते हैं ?
जब दोनों ओर से आती जाती सड़कें किसी पेड़ को कटने से बचाते हुए बचा लेती हैं अपनी खूबसूरती भी और गुज़र जाती हैं पेड़ के दाएं बाएं होकर……कि सड़कों की फ़ितरत तो ज़रूर होती ही हैं, गुज़र जानें की…… मगर पेड़ बने रहने चाहिए अपनी जगह पर हमेशा हमेशा…..है न !
शुभेच्छु –
Dr.A.Bhagwat
Founder at LIFEARIA