एक ख़त : आत्महत्या के विरुद्ध (A Letter Against Suicide)

तुम्हारे हाथों में है ; ये ख़त बस तुम्हारे के लिए ही लिखा हुआ ।
मेरे प्यारे अनजान दोस्त /सहेली ,
मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ , जो मैं महसूस करती हूँ तुम्हारे लिए । तुम तो जानते ही हो कि ऐसा कोई चैनल या अख़बार नहीं जो आत्महत्या की खबरों से भरा -पड़ा न हो और इससे पहले कि तुम्हारा या मेरा नाम उस लिस्ट में शामिल हो या हमारा अपना कोई या अनजान कोई , उस बारे में सोचने लगे । क्यों न हम इस बारे में कुछ ज़रूरी बात कर लें । दोस्त , कभी – कभी जब ज़िंदगी ‘लॉग -इन ‘ नहीं होती ……तब ‘ लॉग – आउट ‘ का ऑप्शन भी नहीं रहता है … और ‘ हैंग ‘ होना ही नियति लगने लगती है । फिर ‘फोर्स्ड शट डाउन ‘ की शक्ल , ज़िंदगी का ख़ूबसूरत दरवाज़ा बंद ……. और पंखें पर लटका देखती है दुनिया हमें …………. सोचती हूँ , जिन घरों में ऐसा सच में घटता होगा , क्या वहाँ पंखों की हवा फिर कभी सुक़ून देती होगी या फिर एक इंसानी ग़लती; पंखों की परिभाषा ही बदल देती है । ट्रेन से कटजाने वालों के घरवालों के लिए ट्रेन की सीटी क्या क़हर बरपाती होगी ………ज़हर खानेवालों के अपनों के हलक़ से किस तरह उतरते होंगे निवाले…… आत्महत्या के आँकड़ों को देखें तो अब चौंकने वाली स्थिति कहीं पीछे रह गयी है। बस एक डर है , ख़ौफ़ है हवाओं में फ़ैलता हुआ । मगर सोचते – सोचते ही ये ख़याल भी आता है कि , खुदखुशी करनेवाले लोगों की संख्या पर ध्यान देने से बहुत -बहुत पहले हम उन लोगों पर ध्यान दें , जो खुदखुशी करनेवालों को देख- देख कर अपना नाम भी उसी सूची में दर्ज़ करने को आतुर हैं । सोचने -समझने की बात है कि , खुदखुशी की एक ख़बर पर तुम्हारे और मेरे जैसे सामान्य इंसान तो दुःख और खेद का अनुभव करते हैं पर एक अवसादग्रस्त( फ्रस्टेटेड ) और ज़िंदगी से हारे हुए हमारे दोस्त पर क्या गुज़रती होगी। ये ख़बर उसे किस दिशा की ओर ले जाती होगी ……. उसका अकेलापन उसे सिर्फ़ एक ही राह दिखलाता होगा ………मौत और सिर्फ मौत (पलायन ) और इससे आसान कोई और राह नज़र नहीं आती होगी। वो हमसे ज़रूर कुछ कहना चाहता होगा अगर उसे यकीन हो कि कोई सुननेवाला है और समझनेवाला भी । ये वो संजीदा मोड़ है , जहाँ से ग़र मुड़ गया मासूम कोई , किसी मनहूस राह पर; तो हार जाएगी इंसानियत सारी और फेल हो जायेंगे हम सभी । तो क्यों न हम ढूंढें उन्हें,आगे लाएं उन्हें , जो हारे नहीं, जीवन से रूठ कर नहीं बैठे रहें । उन्हें पुरस्कृत करें और प्रकाशित भी , कि जल उठें एक दीप से कई दीपक आशाओं के और ज़िंदगी फिर से खिलखिला उठे ,जाग जाये अंगड़ाई लेकर ; जिसे देख मुस्कुरा उठे उदास ज़िंदगानी कोई ।


और रोनेवालों को सांत्वना देने से पहले हँसनेवालों की हँसी – ख़ुशी को बरक़रार रखने का भरपूर ख़याल रखें । क्योंकि कोई दीया अचानक नहीं बुझता कभी , आहिस्ता – आहिस्ता तेल कम पड़ने लगता होगा ………. कुछ आँधियाँ भी उलझनों की साज़िश करती होंगी वरना हँसता – खेलता इंसान कभी खुदखुशी नहीं करता । तो जब कभी उदास देखें किसी को , किसी भी ख़ामोशी को, तो हरगिज़ नज़रअंदाज़ न करें । जब चुप रहने लगे अपना या पराया कोई, तो चुप न रह जाएँ आप भी । उनके दिल के ठहरे पानी में आस्था ,विश्वास , प्यार और अपनेपन का एक दीप ज़रूर प्रवाहित करें । पूछें उनका हाल -ए -दिल , कुछ अपना भी उनसे कह डालें ताकि रुका – रुका सा ठहरा हुआ सा ,ज़हरीला खारा पानी बह निकले ।क्योंकि एक कन्धा भी नसीब न हो सर रखने को जिसे , वो ग़रीब बहुत जल्द ही चार कन्धों पर आ जाता है …………और अब वक़्त हो चला है नाज़ुक बहुत , तो रिश्तों की डोर को ही कुछ और मज़बूत करें ………और इससे पहले कि उठकर चल दे हमारे बीच से कोई ,ऐवें ही …… उसे रोककर गले लगा लें और कह दें जता दें ,अच्छे से कि बहुत एहमीयत है उनकी हमारी ज़िंदगी में और उनके बग़ैर ज़िन्दगानी बोझ बन कर कन्धों पर आ जायेगी फिर अपनी ही अर्थी को कबतक उठा पाऐंगे हम । ओशो के शब्दों में –स्वीकारो अपने आप को और प्यार करो खुद से क्योंकि परमेश्वर की रचना हो तुम। उसने स्वयं तुमपर हस्ताक्षर किये हैं अब तुम खास हो और सबसे जुदा भी । क्योंकि आज तक न तुमसा कोई हुआ है न कोई होगा । यकीन करो ,तुम खासम – खास हो तुम्हारी किसी से कोई तुलना ही नहीं । तो स्वीकार करो इसे और प्यार करो , सेलिब्रेट करो ज़िंदगी को । दोस्त , जो कोई भी हो , कुछ भी होने से पहले तुम एक इंसान हो और मैं भी । तो मेरे अपने, आज एक इंसान को दूसरे इंसान की सख़्त ज़रूरत है ।और तुम खुद मर कर अपने अपनों को भी मार ही देते हो । तो अब छोडो भी ये ज़िद मरने -मारने की और ज़िद करो जीने की , आँख मिलाकर बात करो ज़िंदगी से । जो बेक़रार है तुमसे बतियाने के लिए ,ये बताने के लिए कि उसने कितने सुहाने ख़्वाब बुनें हैं तुम्हारे लिए। सफलताओं की कितनी लम्बी कतार है तुम्हारी प्रतीक्षा में । और तुम नहीं देखना चाहोगे अपने माँ बाप को खुद के लिए रोते हुए , जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और आशाओं से पाला है तुम्हें । जिन आँखों में तुम्हारे लिए सिर्फ सुन्दर सपने हैं; उन्हें तुम आँसुओं से नहीं भर सकते और इससे पहले की मौत का दरवाज़ा खटखटाओ बस एक दफ़ा मुड़ कर ज़रूर देखना ज़िंदगी की और जो हर रोज़ बग़ैर भूले तुम्हे देती हैं 86 , 400 सेकेंड्स का खूबसूरत और बहुमूल्य समय भरपूर जीने के लिए तो क्या हुआ दोस्त , की कुछ लम्हें कड़वे निकले ज़िंदगी के , और कभी भी सभी अंगूर खट्टे नहीं होते । तो एक बार नज़र – ए – इनायत तो करों आईने की ओर , और देखो तो कितने प्यारे दीखते हो तुम , हाँ तुम जिसे अपने आप पर यकीन है कि ज़िदगी की कोई भी समस्या इतनी बड़ी नहीं हो सकती , जो तुम्हें हरा सके । तुम जीतोगे हमेशा दूसरों से ही नहीं अपने आप से भी । क्योंकि उन बेवफ़ाइयों से तुम उतनी नफ़रत नहीं करते जितनी मुहब्बत तुम अपनी ज़िंदगी और उन अपनों से करते हो जो तुम्हारे बग़ैर नहीं जी पायेंगे ………. हैं न ?
— सच में तुम्हारा अपना एक अनजान दोस्त / एक अनजान सहेली ………………

Dr. A. Bhagwat

founder of LIFEARIA

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