Kahani – ख़ुशी के बहाने नहीं हुआ करते, ख़ुश होना ही ख़ुशी की वजह है!

Why are we sad? | हम उदास क्यों होते हैं?

एक दफ़ा कुछ यूं हुआ कि किसी बड़े पहुंचे हुए संत के पास पांच लोग पहुंचे । पाँचों के चेहरों पर गहरी उदासी झलक रही थी! बहुत दुःखी और हताश से उन लोगों ने बारी बारी से अपनी व्यथा सुनानी शुरू की!


पहला आदमी निम्न वर्ग से था और चाय की गुमटी चलाता था,शहर के किसी पॉश इलाके में और अमीरों को देख देखकर उसकी ग़रीबी हर रोज़ उसका मज़ाक उड़ाती! फ़िर भी पूरी ईमानदारी, लगन और जतन से वो अपने काम में व्यस्त रहता और सोचता कि एक न एक दिन तो उसके भी दिन फिरेंगे! तब वो अपने हिस्से का जीवन जी लेगा!


दूसरे उच्च वर्गीय व्यक्ति को पैसों की कोई कमी न थी पर वो अपने रिश्तों से नाख़ुश था! क्योंकि उसके अपनों को भी उसपर यक़ीन नहीं था ! इसलिए सबकुछ होते हुए भी वो हताश और निराश था! ये सोचते हुए कि एक रोज़ सबकुछ ठीक हो जाए शायद और वो अपने हिस्से का जीवन जी पाए!


तीसरा व्यक्ति मध्यम वर्गीय था और उसे लगता था कि उसे तो ख़ुश रहने का कोई अधिकार ही नहीं है या कि जीवन में ख़ुश रहने की आवश्यकता भी है क्या है! जब जीवन का दूसरा नाम ही संघर्ष है!


चौथा व्यक्ति एक प्रेमी है जो किसी ऐसी लड़की के प्रेम में है जिससे उसका विवाह हो पाना सम्भव ही नहीं! और इसलिए उसने तय किया है कि जीवन में ख़ुशी तो छोड़िए वो उस लड़की के बग़ैर जीवित ही नहीं रहना चाहता!


पाँचवा व्यक्ति उस वर्ग का प्रतिनिधि है जो वर्ग आज सर्वत्र व्याप्त है जिसके स्वयं के जीवन में कोई दुख या परेशानी नहीं है पर उसके दुख और परेशानी की वजह बस यही है कि उसके इर्द गिर्द सभी लोग सुखी भला कैसे हैं! लोगों की हंसी और ख़ुशी ही उनके लिए दुखद आश्चर्य है!


और उन पांचों को ध्यान से सुनने के बाद वयोवृद्ध संत मुस्कुराते हुए बोले कितने अचरज की बात है न बच्चों!…..परमेश्वर की बनाई इस दुनिया में मनुष्य नाम के प्राणी को छोड़ कर अन्य किसी भी प्राणी के पास ऐसी कोई समस्या है ही नहीं! जैसी मनगढंत समस्याएं मनुष्यों ने पाल रखी हैं!
कोई जानवर कभी भी किसी अन्य जानवर को शिकार कर, भोजन करते देखकर दुखी नहीं होता पर उसका ध्यान अपने शिकार पर होता है जिससे वो अपना और अपने अपनों का पेट भर सकें! कोई अमरूद का पेड़ कभी ये सोचकर दुखी नहीं होता कि काश! वो आम का पेड़ होता तो कितना अच्छा होता पर वो लगातार अमरूद का पेड़ होने के नाते मीठे,रसीले अमरूद पैदा करते रहता है!
कोई नदी किसी दूसरी नदी के अनुसार नहीं तय करती अपनी दिशा और गति!


और क्या कभी तुमने किसी चिड़िया को सिर्फ़ इसलिए रोते देखा है कि कोई दूसरी चिड़िया चहचहा रही है! नहीं न !
फिर भला पढ़ा लिखा समझदार,बुद्धिजीवी और विवेकशील मनुष्य क्यों नहीं समझता कि खुशियों के लिए कोई शर्त नहीं हुआ करती कभी! जीवन को और और उत्कृष्ट, गुणवत्तापूर्ण, बेहतरीन और खुशनुमां बनाने के लिए हमें प्रकृति की ओर देखना ही पर्याप्त है!
कैसे प्रत्येक वृक्ष अपनी ज़मीन में मौसम विशेष में पैदा किए जा सकनेवाले फलों को उत्पन्न करने के अपने कर्तव्य कर्म में ही संतुष्ट रहता है! कैसे आज के दाने पानी को पाकर ही बग़ैर कल की अनावश्यक चिंता से ग्रस्त हुए ही चहचहाते रहते हैं पंछी! कैसे बहती हैं नदियां कल-कल! कैसे बादलों के उमड़ते घुमड़ते ही,चलने लगती हैं हवाएं ,सनसनन सायं-सायं !!


कैसे जलती तपती धरा को भिगो देती हैं झमाझम बारिशें और नाचने लगता है मयूर!
कैसे शीशों पर बैठी रहती हैं बारिशी बूंदें देरतक! कैसे भीगे भीगे गुलों से चुरा लेती है महक तितली !!
इतना ही नहीं पर अपने नन्हें मुन्ने बच्चों से ही सीख ले इंसान कि कैसे उनके गालों पर आंसुओं के सूखने से पहले ही खिल जाती है मासूम सी मुस्कुराहट!


पर सिर्फ़ सेल्फ़ी के लिए मुस्कुरानेवाला मनुष्य! भला कैसे जान पाएगा ये रहस्य कि ख़ुश होना दुनिया की किसी यूनिवर्सिटी में नहीं सिखाया जा सकता वरना हँसी ख़ुशी में पीएचडी कर सदा मुस्कुराते रहता मनुष्य!
पर हाँ! ये वो कला है जो जीवन की प्रयोगशाला में सीखनी पड़ती है कि हमारी खुशियों की चाबी अंततः हमारे ही हाथों में होनी चाहिए और ये भी कि किस बात पर रोना है और किस बात पर परेशां होंगे हम ….कमसकम ये तो हम ही सुनिश्चित करेंगे….है न!


बहुत शुक्रिया

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