सुनो ! खाना ठंडा हो रहा है जल्दी खाओ !
ट्रेन निकलने को है, जल्दी पकड़ो भाई !
ऑफ़िस नहीं जाना क्या ? उठो जल्दी उठो !
कबतक सोते रहोगे ? परीक्षाएं सर पर हैं ,चलो उठो ,पढ़ाई करो !
अलग करो भाई! गिला और सूखा कचरा, कचरा गाड़ी आगे निकल जाएगी!
अरे! बंद करो कुकर तीन सिटी आ चुकी है !जल्दी बंद करो मोटर, पानी की टँकी ओवर फ्लो हुए जा रही है!!!
उफ़!!!
क्या भागम भाग है न !!
सुबह से शाम और रात तक कैसा दौड़ा दौड़ा, भागा भागा सा ,थकता ,हांफता सा जीवन !!!
क्या दम भर सांस लेंगे हम ! या सांस निकलने पर ही दम लेंगे……आपने टीवी पर वो एड देखा होगा न जिसमें रिवर्स लेती किसी गाड़ी को आने दो, आने दो कहने वाला बच्चा …..गाड़ी के पीछे टकराते ही कहता है…. हो गया !!!!!
ज़रा ग़ौर फ़रमाइए प्यारे दोस्तों ,
क्या हमारा जीवन भी कुछ ऐसा ही नहीं हो गया है ? ख़त्म होने तक सिर्फ़ बेतरतीब सा भागता हुआ, हांफता हुआ!!!
सोचने वाली बात है न कि पिछली दफ़ा कब एक गहरी सुक़ून भरी सांस ली थी हमने, निश्चिंत मन और शांत दिमाग़ से , होंठों पर पसरी मुस्कान के साथ बस उसी एक लम्हें को जीते हुए !
क्या ज़िंदगी अब सिर्फ़ एक मैराथन है जिसे हारेंगे या फ़िर जीतेंगे हम !!
नहीं न ! ये ज़रूर तय नहीं है कि कल क्या होगा ! मगर कमसकम आज तो हम ये तय कर ही सकते हैं न कि हम आज क्या करेंगे ।
ज़िन्दगी की इस सुहानी, रंगीन,महकती हुई और ख़ूबसूरत बगिया में ज़रूर कुछ कटीली ,ज़हरीली झाड़ियां भी होंगी पर क्या उनमें उलझकर हम नकार देंगे ख़ुश लम्हों की उस दिलकश महक को, जो हमारे आज को महका रही है….. नहीं न !
तो मेरे अपनो क्यों न जी लें हम इस एक लम्हें को, इससे पहले की ये गुज़र जाए !
माथा चूमकर, गले लगाकर दोस्ती कर लें ज़िन्दगी से कि जो जान छिड़कती है और फ़िदा है हमपर उससे क्यों न मोहब्बत करें हम भी की जब मुहब्बत से ज़िन्दगी है तब ज़िन्दगी से मोहब्बत क्यों न हो…..!!
है न !
By Dr. A. Bhagwat
founder of LIFEARIA