नमस्कार प्यारे दोस्तों स्वागत है आप सभी का आपके अपने यूट्यूब चैनल लाइफेरिया के इस मंच पर जहां आज हम बढ़ रहे हैं श्रृंखला सोचनेवाली बात के दसवें पड़ाव पर । तो चलिए करते हैं शुरुवात आज के दिलकश मौसम से
वाह! क्या झमाझम बारिश है न!…. मन तरसता है ऐसी बारिश को देखने के लिए! तो क्या करें? निकल पड़ें गाड़ी उठाकर बारिश का आनंद लूटने!
फिर तो कचौड़ी पकौड़ों का मन भी करेगा…..!! अब मन मारें या मन का करें ?पर पिछले ही सप्ताह वो जो कोलेस्ट्रॉल की जांच में औंधे मुंह गिरे थे आप! उसका क्या?
आपको पता है पहले मैं भी सोचती थी कि सारी की सारी प्रोब्लेम्स न बस जेब में अतिरिक्त पैसों की वजह से होती हैं ! क्योंकि जेबें जब भरी पड़ी हों आवश्यकता से अधिक तो इंसान बेचारा करेगा क्या.. जो मन आया खरीदा, जो मन आया खाया!
क्या आपको याद है? फ़िल्म चायना गेट के जगीरा डाकू का वो फ़ेमस डायलॉग “मेरे मन को भाया मैं कुत्ता काट के खाया!!”
दरअसल फिल्मों के लिए ये डायलॉग बाज़ी ठीक है परंतु वास्तविक जीवन में मन में आया सबकुछ करने से बड़ी बड़ी हस्तियों के नाम भी ख़राब होते देखे गए हैं! अभी अभी ऑस्कर एकेडमी अवार्ड्स के दौरान विल स्मिथ के तमाचे की गूंज हम सभी ने सुनी है!
और सोचिए यदि द्रोपदी ने वश में कर लिया होता दुर्योधन पर हँसने का मन तो……ख़ैर!
अक़्सर ऐसा कहा भी जाता है कि जिसे मन मारने का हुनर आ गया!
उसके लिए इस जहां में कुछ भी असम्भव नहीं!
वहीं कुछ लोग ये कहते हुए भी पाए जाते हैं कि बहुत मन मार चुके…..कभी तो यूँ हो कि हम कुछ मन का कर सकें!
तो अब सोचनेवाली बात ये है कि आख़िर हमें क्या करना चाहिए?
मन की करें या मार डालें मन को?
क्यों न मध्यम मार्ग को चुन लें और ज़रूर निकल पड़ें मुसलसल बारिश का लुत्फ़ उठाने….मग़र हाई कोलेस्ट्रॉल के मद्देनज़र कचौड़ी पकौड़ों से तौबा करते हुए सड़क किनारे गर्मागर्म भुट्टों पर कॉन्सन्ट्रेट कर लिया जाय!
और जिस तरह हम अनसुनी कर देते हैं मन की हमेशा उसी तरह हर दफ़ा उसे मारने की बजाय कभी कभार रख लिया जाय मन का मन भी……क्योंकि हमारे प्यारे से मन को मारने की नहीं परन्तु साधने की, सम्भाले जाने की गरज़ होती है सलीक़े से! आख़िर जो मन बन्धन का कारण होता है याद रहे कि मुक्ति भी उसी से सम्भव है! और तभी हम कह सकते हैं कि
” मन के साधे सब सधे!”..…है न!
बहुत शुक्रिया…
सोचनेवाली बात 10 – मन के साधे सब सधे।
