लाख़ मिलाले कोई दुश्मन, मीठी बातों में ज़हर ! पर बग़ल में छुपी छुरी आख़िर नज़र आ ही जाती है!
जी हाँ, प्यारे दोस्तों स्वागत है आप सभी का आपके अपने यूट्यूब चैनल लाइफेरिया के इस मंच पर जहां आज फिर हम मिल रहे हैं एक बेहद रोचक विषय के साथ….
पर उससे पहले आप सभी का ह्रदय की अनन्ततम गहराइयों से कोटि कोटि धन्यवाद, बहुत बहुत शुक्रिया कि आप सभी के साथ,समर्थन,सुझाव ,और सहयोग के बग़ैर हमारे लिए सम्भव नहीं था यहां तक पहुंचना ! और भविष्य में भी हमें आपके सुझाव और मशवरे की दरकार रहेगी ।
और हाँ! आप भी किसी विशेष और उल्लेखनीय विषय पर कुछ सुनना चाहते हैं तो कृपया कमेंट बॉक्स में हमें लिख भेजिए हम ज़रूर कोशिश करेंगे आपके सुझाए विषयों पर अपना मत व्यक्त करने की ।
तो चलिए करते हैं शुरुआत…. एक बेहतरीन विषय की…..उन बातों की जिन्हें भावों तक पहुंचने के लिए भाषा के पुल की गरज़ ही नहीं होती क्योंकि उनका सफ़र तो तय होता है सीधे दिल से दिल तक और दिमाग़ से दिमाग़ तक! पर सच कहूं तो ये कोई बहुत बड़ा रॉकेट साइंस नहीं है ! क्योंकि यदि हमारे इर्दगिर्द कोई ऐसा है जो हमें पसन्द नहीं करता तो उसे अपना मुंह नहीं खोलना पड़ता ये बताने के लिए कि उसे हम फूटी आँख नहीं भाते!! ठीक उसी तरह यदि कोई ऐसा है जो मन ही मन पसन्द करता है हमकों या अच्छा सोचता है हमारे बारे में तो उसे भी बोलकर ही बताना नहीं पड़ता ! मतलब बिना बोले ही और बिना सुने ही कितना कुछ समझते रहते हैं हम ! पता है क्यों ? क्योंकि जो रियल कम्युनिकेशन या सच्चा संवाद होता है न उसे दुनिया की किसी भाषा,किन्हीं शब्दों या वाक्यों या एक्स्प्रेशन की गरज़ ही नहीं होती पर वो तो डायरेक्ट हार्ट टू हार्ट और माइंड टू माइंड अर्थात दिल से दिल और दिमाग से दिमाग तक लगातार चलते रहता है ! और इसीलिए हम जान पाते हैं ,समझ पाते हैं, पढ़ पाते हैं किसी के भी मन की बातें ! कि लाख़ मिलाले कोई दुश्मन, मीठी बातों में ज़हर ! पर बग़ल में छुपी छुरी आख़िर नज़र आ ही जाती है हमें ! और सतर्क हो जाते हैं हम ! कि मन का पाप तन की चादर में कहां और कब तक छुपता है भला !
ठीक वैसे ही कोई छैल छबीली, रंग रंगीली सोलहवीं उमर लाख़ लाख़ छुपाले ,शर्मो हया के पर्दें में अपने जज़्बातों को….पर वो सलोना सा सजन रखता है हुनर बस एक ही नज़र में पढ़ लेने का दिल की तमाम बातें ! तभी तो जब होती है दो जनों की पहली मुलाक़ात ! दरअसल उसके बहुत बहुत पहले ही मिल चुकी होती हैं वो दो रूहें ,आँखों ही आँखों में हो चुकी होती हैं हज़ार हज़ार सरगोशियां !! कि मिलने से पहले ही मिले न थे जो,वो भी क्या ख़ाक मिले थे! और हर दफ़ा किसी से मिलने के लिए ,किसी से मिलने की ही गरज़ नहीं होती! और इसीलिए फ़क़त अकेले नज़र आने से ही कहाँ अकेले हो जाते हैं हम, किसी अपने से लम्बी, गहरी, गुफ़्तगू चलती ही रहती है ! कोई लाख़ चिल्लाकर भी कुछ कह नहीं पाता और किसी की चुप्पी भी बहुत ऊंची आवाज़ में बोलती रहती है …….है न!
बहुत शुक्रिया….