mitti ke dipak poem in hindi
घर भी मिट्टी के होते हैं!
और सपने भी मिट्टी के उनके !
जो मिट्टी के दीए बेचने,
प्लास्टिक के बाज़ार में आ जाते हैं!
जैसे बारिश में कागज़ की कश्ती लिए आते हैं!
लोग इधर आकर उधर से गुज़र जाते हैं!
फ़िर दिन दीवाली के कुछ और क़रीब आते हैं!
बाजूवाले के प्लास्टिक दीए सारे ही बिक जाते हैं!
पर अपने मिट्टी के दीए फिर भी मुस्कुराते हैं!
तब आसमां में ग़म के बादल घनघोर घिर आते हैं!
पर दिए मिट्टी के सूखे ही रह जाते हैं!
कि वो तो आख़िर आँखों के पानी से ही बनकर आते हैं!
तो अबकी बार जो जाएं हम!!
दीवाली के मेले में….!
तो झांक ले झुक कर इकबार उन उम्मीदी नैनो में !
कि घर ही कच्चे होते हैं बस, हौसले पक्के होते हैं!
जिनका हाथ थामें वो हर बरस आ जाते हैं!
कि त्यौहार तो उनके घर भी आने हैं!
तो क्या हुआ कि उनके हाथ बस चार आने हैं!
तो आओ इस बरस हम सब मिलकर,
कुछ ऐसा कर दिखलाएंगे…
अपने ही नहीं पर उनके घर भी खुशियों के दीप जलाएंगे!
कि हर घर में, हर देहरी पर,अब दीए वही जलाएंगे!
जिन दीयों की मिट्टी में खुशबू इंसानी मिट्टी की!
है हक़ उन्हीं का रोशनी पर,रौनक उन्हीं से दीवाली की!
रौनक उन्हीं से दीवाली की!…..है न!