क्या-क्या हो रहा है न इन दिनों !
सोना चाहो तो नींद नहीं ! आँख खुले तो चैन नहीं !
भोजन मिले तो भूख नहीं ! जल मिले तो प्यास नहीं !
फुर्सत में तो हम सभी हैं पर बेफ़िक्र हममें कोई नहीं !
घण्टों बैठे रहें मगर दिल को कहीं आराम नहीं !
सारा परिवार घर में ही हैं पर हँसी ख़ुशी की शाम नहीं !
ऑफ़र तो ढेरों थे पर क्या धंधा ज़ीरो हुआ नहीं !
और कारोबारी कैसे बचे ? जब कारोबार ही बचा नहीं !
स्कूल नहीं,कॉलेज नहीं,ऑफ़िस नहीं,बाज़ार नहीं, ज़िंदा लोगों की बस्ती में ,बन्दे सारे ज़िंदा नहीं!
तन से कुछ-कुछ ज़िंदा भी हैं पर मन से सारे ज़िंदा नहीं !
आधे जीकर, आधे मरकर हमने जाना सत्य यही कि झूठे सारे रिश्ते नाते, इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं !
हॉस्पिटल में जमा हुए तब इस सत्य से साक्षात्कार हुआ, इस भरी दुनिया में हमसे अकेला कोई नहीं !
सोशल मीडिया ने पहुँचाई शुभकामनाओं की भेंट मगर क्या वहीं से पहुंची हम तक डर और ख़ौफ़ की खेप नहीं !
बस वैक्सीन के आ जाने से ही,टलने वाली ये बला नहीं !
जबतक सबतक पहुंचे ना, कॅरोना मुक्त भारत नहीं !
डॉक्टरों और नर्सों ने भगवान होना सिद्ध किया पर ऑक्सीजन की इंजेक्शन की क्या कालाबाज़ारी हुई नहीं!
अमीर पैसों के रहते मरा गरीब पैसों की कमी से, ज़िन्दगी लाख़ जुदा हो पर मौत किसी की अलग नहीं !
अरबपति का 50 ही निकला, रोडपति का 100 ऑक्सीजन, तो क्या हुआ कि गरीब का अमीरों की सूची में नाम नहीं !
हाँ! हर सांस पे हक़ हम सब का है, ये किसी एक की बपौती नहीं !
पर इस सब के चलते भी शांति की कैसे बात करें ! क्या चल रहा इन दिनों भी इस धरा पर युद्ध नहीं ?
तन मरे तो गिनती हुई,मन मरे अनगिने, ज़मीर कितनों के मरे, नियत क्या मरी नहीं !
और एक अकेली महामारी से ही क्या रिश्तों का रंग भी उड़ा नहीं !
ख़ैर! अब छोड़े इन बातों को, जिनमें समस्या है पर हल नहीं!
और फ़िर मिल जाएं इक दूजे से, कि अपनों के साथ से बड़ा कोई वैक्सीन नहीं !
क्योंकि आज अपने पराए भूल कर ,क्या सभी को मदद की गरज़ नहीं!
और जब ये शत्रु हम सभी का है, किसी एक से हारने वाला नहीं !
तो आओ हमसब मिलकर बनाएं, प्रेम की एंटीबॉडी, कि अब दो बोल प्रेम के ही ऑक्सीजन से कम नहीं!
और साथ रहे जो हमतुम तो , है किसी बला में वो दम नहीं !
और हम ही से ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी से हम नहीं ! ज़िन्दगी से हम नहीं !
बहुत शुक्रिया दोस्तों….
by Dr. A. Bhagwat