भले ही गांठ बांध कर शुरू किए जाते हों रिश्तें! मगर वास्तव में रिश्तों की कोई गांठ नहीं हुआ करती! जिसे खोल कर आज़ाद हुआ जा सके और चुपके से दोबारा बांध कर फिर बन्ध जाया जा सके!!
क्योंकि रिश्तों में तो दरअसल गांठ की कोई गुंजाइश ही नहीं होती!!
इसीलिए सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी की तर्ज़ पर अक़्सर बस टूट जाते हैं रिश्तें!!!
कि उनकी कोई एक्सपायरी डेट तो होती नहीं!
जिसका रिन्युअल करवाया जा सके!!
रिश्ते तो बस उगते हैं वक़्त की शाख पर ज़िंदगी को महकाने के लिए…..
ये बात और है कि कभी कभी बीच बीच में उग आती हैं ग़लतफ़हमियों, उलझनों और नासमझियों की कटीली झाड़ियां!!!
जिनमें उलझ कर घायल हो जाती हैं रिश्तों की कोमल बेलें!!
और तब जिनसे महकना था जीवन अपना उन्हीं में उलझ कर बस घुटने लगता है दम अपना!
तो क्या करें जब सूखने लगे रिश्ता कोई!
उखाड़ कर फेंक दें उसे या निकाल बाहर करें !!
ये भूल कर कि इसी रिश्ते से महक उठी थी कभी ज़िंदगानी अपनी और यही रिश्ता कभी पूरी रवानी पर था!
तो क्या हुआ कि तोड़-फोड़ आसान होती है हमेशा! क्यों न इस दफ़ा जोड़-जाड़ से भी काम लिया जाय!
और रूठे हुए अपनों को, टूटे हुए रिश्तों को कुछ और शिद्दत से जकड़ लिया जाए बाहों में!
देकर गालों पर प्यार भरी पप्पी!!
टूट कर देदे उन्हें मासूम सी एक झप्पी!
की टूटता हुआ कुछ…..टूटने से बच जाए!
लौट आए किसी रिश्ते की उखड़ती हुई सांस!
और इंसानियत को इंसान से बस यही तो है आस! कि हम सभी को चाहिए हमेशा सभी अपने ….बस अपने पास!…..है न!
बहुत शुक्रिया…..