ज़िन्दगी यदि सवाल है तो जवाब भी ज़िन्दगी ही होना चाहिए… मौत नहीं !

ज़िन्दगी यदि सवाल है तो जवाब भी ज़िन्दगी ही होना चाहिए…मौत नहीं!

सोचनेवाली बात है न ! कि हमेशा तो नहीं !!!
पर हाँ ! अक़्सर सवालों में ही कहीं छुपे होते हैं जवाब भी…..वैसे ही जवाबों का धुआं है, तो यक़ीनन सवालों की आग भी धधक ही रही होगी कहीं!! और जैसे लाजवाब होती हैं बाते कईं …..वैसे ही नहीं खोजे जाते हैं जवाब ,जिनके सवाल नहीं हुआ करते….और इसीलिए बरबस हम कह उठते हैं कई दफ़ा कि “सवाल ही नहीं उठता” (ग़ौर तलब है कि हमारी सोच,हमारा परसेप्शन भी सवालों को जवाब, और जवाबों को सवाल बनाने के लिए पर्याप्त होता है ।)

ख़ास तौर से ज़िंदगी के सन्दर्भों में यही उचित प्रतीत होता है कि सवाल है ज़िंदगी तो जवाब भी ज़िंदगी ही होना चाहिए “मौत की बात मौत से करेंगे मरने के बाद”……ठीक है न !
क्योंकि अभी इस वक़्त ज़िंदा हैं हम….ये अलग बात है कि किस तरह ज़िंदा हैं और कितने ज़िंदा हैं ?
अर्थात आधे – अधूरे ज़िंदा हैं या सौ फ़ीसदी ज़िंदा!!
सच कहूं तो ये सोचने का समय मनुष्य के पास होता ही कहाँ है ! मगर दोस्तों, 2020 और 2021 वो दो महत्वपूर्ण वर्ष होने जा रहे हैं जिन्हें भविष्य में मृत्यु नहीं वरन जीवन के वर्षों के रूप में जाना जाएगा। क्योंकि आख़िर में जो बचेगा वो अनिवार्य रूप से ‘जीवन’ ही होगा मृत्यु नहीं । मृत्यु से संघर्ष कर बचा हुआ और बचाया हुआ जीवन ही महत्वपूर्ण होगा।
क्योंकि जीवन है तो ही सम्भव है मृत्यु से बचने का प्रयास भी, वरना मरे हुओं को जीवित करने का प्रयास कौन करता है भला ! कोशिश तो हरदम जीवन बचाने की ही सम्भव है।
तो यदि जीवित हैं हम तो इसे हरगिज़ हल्के में न लीजिए ! पर हाँ! जीने की ख़्वाहिश के ऑक्सीजन से इस क़दर लबरेज़ हो जिगरा अपना कि मौत के लाख़ दमघोटू षड्यंत्र भी विफ़ल हो जाएं । और हम लौटें तो हर दफ़ा इस क़दर लौटें ज़िन्दगी की जानिब कि मौत भी शरमा कर किनारा कर ले….क्योंकि कहाँ हमारा जीवन सिरफ़ हमारा होता है ! हम मेंसे हर एक से रोशन अपना आशियाना होता है और हमीं से खुशनुमां हमारे अपनों का जीवन भी !
तो प्यारे दोस्तों, क्यों न बचा लें हम अपने हिस्से का अपना जीवन और जीत ले ये जंग-ए-ज़िन्दगी !
कि मौत तो मयस्सर है इक रोज़ यक़ीनन पर ज़िन्दगी कहाँ हर रोज़ मिलती है ! ये वो शय है जनाब, जो हररोज़ किसी मासूम बच्चे के चेहरे सी खिलती है !
तो आइए ले लेते हैं एक और गहरी और गहरी सांस ! फ़िर ज़िन्दगी की दहलीज़ पर मत्था टेककर चूमने देते हैं अपना माथा उसे !
कि न वो बनी रहेगी हमारे बग़ैर न हम उसके बग़ैर जी सकते हैं …..है न !
बहुत शुक्रिया…

by Dr. A. Bhagwat

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