सोचने वाली बात 07 क्या करें ? जब ग़लत समझ बैठे लोग हमें !! या नहीं समझे वैसे,जैसे हम हैं !!

सोचने वाली बात 07
क्या करें ? जब ग़लत समझ बैठे लोग हमें !! या नहीं समझे वैसे,जैसे हम हैं !!

बहुत गफ़लत होती है!, बेहद परेशानी! बड़ी बैचेनी! एक तरह से उलझन में डाल देनेवाली स्थिति, जब लोग कोई ग़लत राय बना लेते हैं हमारे बारे में! कोई टैग लगा देते हैं हम पर! या फ़िर सोचने लगते हैं कुछ ऐसा हमारे बारे में जैसे हम वास्तव में हैं ही नहीं ! फ़िर चाहे वो हमारे घरेलू मामले हों, रिश्तेदार हों,सहकर्मी हों,या फ़िर पड़ोसी कोई….लोगों की इसतरह की ग़लतफ़हमी या फ़िर कभी कभी खुशफ़हमी का हम आए दिन शिकार होते रहते हैं! अब सोचनेवाली बात यह है कि हम ऐसे तथाकथित लोगों, ऐसी परिस्थितियों से आख़िर कैसे निपटें?
तो प्यारे दोस्तों,साथियों ,ज़िन्दगी की हज़ारों उलझनों में हमेशा ही ये मुमकिन भी नहीं होता कि हम ही लोगों को अपनेबारे में ठीक वैसा समझा सकें जैसे कि हम वास्तविक रूप में हैं! ये हमारे हाथों में हरगिज़ नहीं है कि हम ही तय कर लें कि लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे क्या नहीं !! चूंकि ये सारा घटनाक्रम उनके अपने दिल और दिमाग़ में होता है ! तो ऐसे में हमारे हाथ में रहता ही क्या है सिवाय निराश होने के…..!!
आपने सुना ही होगा एक जुमला अक़्सर कि “यदि यह भी हम ही सोचेंगे कि लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे! तो फ़िर लोग क्या सोचेंगे? है न!
तो क्यों न ये सोचना छोड़ कर ,आगे बढ़ा जाए कि लोग क्या सोचेंगे….क्योंकि लोग तो वही सोचेंगे जो वे सोच सकते हैं या फ़िर सोचना चाहते हैं और हम ये कभी भी तय नहीं कर सकते कि वे क्या चाहेंगे तो हर हाल हमें दूसरी तीसरी बातों को छोड़कर ये सोचना होगा कि आख़िर हम क्या चाहते हैं ?
सोचने दीजिए लोगों को जो वे सोचते हैं! हम वो सोचेंगे जो हमें सोचना चाहिए …हां! हम ये ज़रूर तय कर सकते हैं कि कमसकम हम लोगों के बारे में कोई ग़लत राय न बनाएं क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी सोच, अपनी सीमा, अपनी परिस्थितियां और अपनी प्राथमिकताएं होती हैं जिसके चलते उनका व्यवहार प्रभावित होता है और ये भी प्यारे दोस्तों कि ज़िन्दगी इतनी लंबी भी नहीं कि उसे बस एवें ही छोटी मोटी बातों पर ज़ाया कर दिया जाए इसीलिए हमनें ये देखा है अक़्सर कि हम मेंसे हर वो व्यक्ति जिसका लक्ष्य जीवन में कुछ बड़ा और महत्वपूर्ण करना हो वो कभी भी इस बात पर वक़्त नहीं गवाएगा कि लोग उसके बारे में क्या सोचते या कहते हैं !
क्योंकि तब उसके लिए यही ज़्यादा महत्वपूर्ण और पर्याप्त है कि वो स्वयं अपने बारे में क्या सोचता है….है न !
बहुत शुक्रिया

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