तुम्हें खोने की हिम्मत नहीं है मुझमें, फ़िर भला तुम्हें पाने की ज़ुर्रत क्यों करूँ!

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तुम्हें खोने की हिम्मत नहीं है मुझमें, फ़िर भला तुम्हें पाने की ज़ुर्रत क्यों करूँ!

जानते हो? हर दफ़ा तुम्हें पा लेने के मेरे ख़्वाब, बस तुम्हें खो देने के डर से ही टूटे हैं!
तो अब पूरी शिद्दत से चाहती हूं मैं, बरक़रार रखना अपने दिल में तुम्हारी चाहत को ,तुम्हें पाने की कोशिश के बग़ैर! जैसे अक्सर बियाबान जंगलों में ही खिला करती हैं, महकते फूलों की हसीन वादियां, ये जानते हुए भी कि उन्हें देखने कोई नहीं आएगा! कोई आस की बाती जलती रहती है फ़क़त तेल की आख़री बून्द की ख़ातिर,दिये को ख़बर हुए बग़ैर ही! क्योंकि वास्ता उसका रोशनी से हुआ करता है!
वही रोशनी जो गवाह है पतंगें के इश्क़ की ! जिसे जल कर मिटने का हुनर आता है, कि इश्क़ की सच्ची इबारत तो वही लिख सकता है, जिसके लिए इश्क़ इबादत हो! ज़िन्दगी के किसी बेहद हसीन मोड़ पर जहां दिख जाए किसी चेहरे में ‘रब’ , वहां किसी को पाने की नहीं ,पर होती है शुरुवात बस ख़ुद को ही खो देने की!

पर इंसान जो महकते फूलों को तोड़ लेने से बाज़ नहीं आता! वो भूल जाता है
कि हर वो चीज़ जो मिली नहीं है अब तक!…….या मिल कर खो गई है!…. बहुत बहुत क़ीमती हो जाती है हमारे लिए !
वो तमाम जो मिला नहीं हमें, नसीब हुआ नहीं कभी भी……बस उसी की एहमियत रहती है बरक़रार! ताज़्ज़ुब मग़र मिल कर हमें; वह खो देता है वज़ूद अपना, एहमियत अपनी !
इसके बावज़ूद हम सभी, फासलों की ख़ूबसूरती को भूलाकर अक़्सर वही सबकुछ पा लेना चाहते हैं, हासिल कर लेना चाहते हैं , जो लुभाता है, बहुत पसंद आता है हमें! लगता है उसके बिना हम जी ही नहीं सकते!
पर ये जानें बग़ैर ही कि पाकर उसे खो देंगे हम…… बस किसी तरह उसे पा लेने की चाहत से आज़ाद नहीं हो पाते !
और आख़िर किसी को खोने के लिए ही सही, पर पा लेने पर आमादा हो जाते हैं!
फ़िर इस ख़ुशफ़हमी में इतराते फ़िरते हैं! गोया पा लिया हो हमनें उन्हें! पर दरअसल उनसे हम महरूम हो चुके होते हैं हमेशा के लिए….. है न !
बहुत शुक्रिया….

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