सोचने वाली बात 01 : अक़्सर हम सोचा हुआ कुछ क्यों नहीं कर पाते हैं ?

नमस्कार
स्वागत है आप सभी का आपके अपने “लाइफेरिया” के इस मंच पर जहां आज हम शुरुवात कर रहे हैं श्रृंखला
“सोचनेवाली बात “

सोचने वाली बात -01

सोचने वाली बात है न ! कि अक़्सर हम सोचा हुआ कुछ क्यों नहीं कर पाते हैं ?
दरअसल यहां हमें उन लोगों पर ध्यान देने की ज़रूरत है जिन्होंने जो सोचा वो कर दिखाया भी ।
क्योंकि वो सिर्फ सोचते नहीं रहें पर सोचे हुए पर अमल भी कर दिखाया । ग़ौर तो ये करना है कि आख़िर उन्होंने ये कैसे कर दिखाया !
तो देखिए इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसने अपने भविष्य के लिए कुछ सोचा न हो , सभी सोचते हैं पर उनमें से कुछ लोग एक सोची समझी रणनीति के तहत उस पर अमल भी करते हैं ।
जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए सर्वप्रथम हमें अपनी योग्यता और क्षमता के अनुरूप कार्यक्षेत्र का चयन करना होता है।
तदुपरांत उसमें आगे बढ़ने के लिए एक एक क़दम तय करना अर्थात योजना बनाना कि कैसे हम अपने सपनों को अमली जामा पहनाएं !
और सबसे महत्वपूर्ण ये कि जब इस हेतु हमें किसी प्रकार की असुविधा होने लगे तब भी बग़ैर रुके, अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर आते हुए लगातार आगे बढ़ते रहें । क्योंकि दोस्तों, लक्ष्य कोई भी क्यों न हो कुछ न कुछ परेशानी तो होगी ही परन्तु यहां बेहद ज़रूरी है हमारा अडिग बनें रहना क्योंकि यही वो मोड़ है जहां से सिरफ़ सोचने और सोचते रहनेवाले वापस लौट जाते हैं और कर गुज़रने वाले ,कर गुज़रते हैं।
जैसे वो कछुआ …जो बढ़ता रहा ये सोच कर कि वो जीत सकता है । पर गौर फ़रमाइए कि उसने केवल सोचा नहीं ! सिरफ़ सोचने का काम तो खरगोश ने किया था कि वो जीत सकता है ….यक़ीनन खरगोश जीत भी सकता था यदि अपने सोचे हुए पर अमल भी करता ….
तो प्यारे दोस्तों,
सोचना बहुत अच्छी बात है, सपनें देखना बहुत ज़रूरी है परंतु उससे भी ज़रूरी है उनको सच करना । तो आइए करते हैं शुरुआत…..सबसे पहले सोचते हैं कि हम क्या – क्या कर सकते हैं । क्योंकि हम सभी की कुछ न कुछ ख़ासियत होती है , कुछ ऐसा जो हम औरों से बेहतर कर सकते हैं । क्योंकि हम ही में छुपे हैं कुछ प्रतिभावान वैज्ञानिक, कुछ बेहतरीन प्रशासनिक अधिकारी, कुछ अफ़लातून बिज़नेसमैन , कुछ उम्दा कलाकार , कुछ अनोखे लेखक ।
और जब हम खोज निकाले अपने ही भीतर छुपी, कोई ख़ूबी अपनी …तो फ़िर उस पर काम करने की शुरुआत भी मुमकिन होगी…हमारी कड़ी मेहनत और लगन कभी ज़ाया नहीं होगी और फिर लगातार और लगातार बढ़ते रहने की प्रवृत्ति से ही सम्भव होगा उदय ….सफलता के उस सूर्य का…. जिसकी रोशनी से जगमगा उठेगा जीवन ….न सिर्फ़ अपना पर अपने अपनों का भी ….है न !

By Dr. A. Bhagwat

founder of LIFEARIA

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